नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-12
लक्षणा चिंतित थी कि वह अब कदंभ के साथ सैर नहीं कर पाएगी, और अभी बहुत से कार्य शेष थे। उसके माता-पिता को जानकारी नहीं.....तब बिना बताए गांव में यूं ही निकल जाना भी शेष नहीं। ऐसे समय में उसके पास कोई भी विचार नहीं सूझ रहा था, लेकिन लक्षणा के भाव उसकी नानी (मास्टरनी जी) से छुप नहीं सकते थे, क्योंकि वह भली भांति परिचित थी लक्षणा के जीवन के रहस्य से.....
मास्टरनी जी जानती थी कि लक्षणा का जन्म कोई सामान्य नहीं हो सकता। खासकर तब जबकि खुद नागदेवी ने उसे आशीर्वाद प्रदान किया और लक्षणा के पूर्व उनके कुल गुरु ने यह घोषणा कर दी थी कि तुम्हारी पुत्री का जन्म कोई सामान्य नहीं है। यह ईश्वरी अवतरण में सहायक बनेगी। उस समय खुद उन्हें भी इस बात पर यकीन नहीं हुआ था। लेकिन चंदा (लक्षणा की मां) के जन्म के बाद घटने वाली घटनाएं जो कि सामान्य सी लग रही थी। जैसे उनके खेत में अचानक नागों के जोड़ों का आ बसना, खेत के मंदिर में अचानक रौनक सी लगना और साथ ही साथ और भी असामान्य घटनाएं जिन्हें विशेष गौर करने पर ही जाना जा सकता था।
लेकिन मास्टरनी जी ने अपने परिवार से दादी नानी के किस्से के साथ ईश्वरी शक्ति पर गहरा अध्ययन किया था। वह तो परिवार की जिम्मेदारियों ने उन्हें मजबूर कर दिया था कि वह अपनी छोटी बच्ची को छोड़ कोई अन्य कार्य नहीं कर सकी। नहीं तो उनका पूरा मन था कि वह अपने पति के साथ-साथ अध्यापन कार्य करती। शुरू से ही शिक्षक बनना मास्टरनी जी का सपना था, लेकिन वह पूरा ना हो सका और इसके पीछे उनका मातृत्व भाव था।
चंदा के विवाह के पश्चात उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अपनी कुलदेवी की सेवा में लगा दिया था, और उसी से प्राप्त शक्तियां उन्हें अपने आसपास होने वाली अलौकिक शक्तियां उनके क्रियाकलाप इत्यादि से अवगत करवाते रहते थे। वो स्पष्ट तौर पर देख सकती थी लक्षणा के सफर को.....
कदंभ की उपस्थिति ग्राम द्वार के बाहर मास्टरनी जी जान चुकी थी। इसलिए वह लक्षणा को लेकर ग्राम द्वार के पास नागराज से विशेष अनुमति ले कदंभ को अपने अतिथि के रूप में ले आई थी। अपने नानी का ऐसा संयोग देख लक्षणा बेहद खुश थी, क्योंकि अब तक उसकी सारी जानकारियां परिवार से गुप्त थीं।यदि लक्षणा की बात कोई समझ पाता था तो एकमात्र लक्षणा के दादा जी (सुनील जी) ही समझ पाते थे। लेकिन स्पष्ट तौर पर उन्होंने मदद स्पष्ट तौर से नहीं की थी। चाहे जो विवशता रही होगी।
उनकी नानी की सहायता से कदंभ को अपने साथ देख लक्षणा अत्यंत खुश थीं। वही चंदा, सावित्री और दिनकर जी को यह देख कर अच्छा लग रहा था, कितनी जल्दी लक्षणा को यहां का वातावरण अच्छा लगने लगा। कदंभ ने सारी सच्चाई और लक्षणा के जीवन का लक्ष्य उसकी नानी को कह सुनाया। जिस पर वह प्रहर तो घबराई, लेकिन दूसरे ही पल ईश्वर की इच्छा जान वह भी मदद के लिए तैयार हो गई और कदम और लक्षणा को ले अपने खेत में स्थित कुल देवी के मंदिर में जा पहुंची।
जहां कदंभ, लक्षणा और उसकी नानी के विशेष अनुग्रह पर स्वयं कुलदेवी ने उन्हें आकर सलाह दी कि वह नागमाता के मंदिर जाकर चाबी के दर्शन कर उनसे सहायता प्राप्त करें। इसके पश्चात पंच द्वारों की आराधना कर उनसे उस रत्नों की उपस्थिति की जानकारी और विशेष शक्तियों को प्राप्त करें जो ब्रह्मांड की अनंत गहराइयों में छिपे हुए हैं और संरक्षित हैं।
यक्ष, गंधर्व और नागशक्तियों के साथ अनेक अदृश्य अलौकिक शक्तियों के द्वारा और साथ ही साथ सावधानी के तौर पर और उनकी रक्षा के लिए विशेष रक्षा कवच लक्षणा को प्रदान किया, जिसे भेद पाना असामान्य सा था। और साथ ही साथ यह भी स्पष्ट कर दिया कि कदंभ सिर्फ सहायक हो सकता है। वह सिर्फ नागपत्री की संरक्षक संरक्षित स्थान तक जा पाने में सक्षम है। जो अनेक सुरक्षा कवच से ढका हुआ है। उनके भागे जाने की अनुमति कदंभ को भी नहीं, इसलिए तुम्हें कदंभ से भी ज्यादा शक्ति की जरूरत है।
अब तुम ऐसे एक स्थान पर हो कि यदि तुम शीघ्रता नहीं करोगे तो ब्रह्मांड अति शीघ्र दूसरी लक्षणा के निर्माण पर विचार करने लगेगा। क्योंकि नाग शक्ति महज कोई जीवंत शास्त्र नहीं, अपितु ब्रह्मांड की वह शक्ति है, जो यदि चाहे तो खुद ही एक दूसरे ग्रह को जीवन समेत प्रकट कर सकती है। वह वर्तमान में मां जया के आशीर्वाद और उनकी आज्ञा मान तपस्या में लीन हैं, और लक्षणा तुम्हारी राह देख रही है, उस पल को प्रदान करने के लिए उसके पीछे कुछ विशेष कारण है। जिसका भान तुम्हें खुद उसी स्थान पर जाने पर हो जाएगा।
लक्षणा तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब नागपत्री को स्थापित किया गया तब उसी समय नाग कन्याओं ने इसके गुप्त रास्ते अपने भक्तों द्वारा स्थापित उन मंदिरों तक भी बना रखे हैं, जहां उनका पूजन और स्मरण किया करते थे। इसका मुख्य कारण यह था कि नागपत्री से उत्सर्जित ऊर्जा और उसकी तपस्या का फल धारा प्रवाह के साथ भक्तो तक पहुंचता रहे।
मैं तुम्हें ऐसा ही एक स्थान मां मनसा देवी का मंदिर जो कि हरिद्वार में स्थित है, जो प्रारंभ में आदिवासियों के द्वारा पूजनीय था, और धीरे-धीरे अब उसकी जानकारी सभी को हो गई। इस जगह पर मां मनसा के सातों नामों के जाप से सर्पों का भय नहीं रहता है। वह नाम है " जरत्कारु ,जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभागिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारूप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी"। मंदिर का मार्ग हरिद्वार स्थित हरकी पैडी से होते जाता है। यहां मां उस पहाड़ पर विराजमान है।
ठीक इसी तरह देव, जया, दोतलि, विषहर, शामिलबाटी देवी के भी मंदिर विश्व के अनेक भागों में स्थित है। यहां इनके भक्त इनका प्रेम पूर्वक पूजन करते हैं। और नागपत्री से उत्सर्जित ऊर्जा पाकर कृतज्ञ होते हैं। यह सिर्फ इस ब्रह्मांड की भांति ऐसे ही आकाशगंगा में अनेकों ब्रह्मांड उपस्थित है और ठीक ऐसे ही मंदिर भिन्न-भिन्न छोटे-बड़े रूपों में सुसुप्त या जागृत लेकिन शक्तियों से परिपूर्ण सब के तार कहीं ना कहीं उस स्थान पर जाकर मिलते हैं।
अब यह सोचना कि इतने लंबे रास्ते कैसे??तो यह सिर्फ पृथ्वी के केंद्र बिंदु की नहीं अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु में स्थित है। यह पल भर में पूरे ब्रह्मांड को समेट लेने की ताकत भी रखता हैं, इसलिए चाहे असुर हो या देव, यक्ष हो या गंधर्व या मानव या इस सृष्टि का कोई भी प्राणी नाग शक्ति की महिमा से इनकार नहीं करता। हर कोई उनका पूजन और आशीर्वाद किए बिना इस सृष्टि के किसी भी कोने में पूर्ण विकास नहीं प्राप्त कर सकता।
क्रमशः.....
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 12:43 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
24-Oct-2023 01:32 PM
बेहतरीन भाग
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